लेखनी कविता - प्रेम न बाड़ी ऊपजै, प्रेम न हाट बिकाय-कबीर

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प्रेम न बाड़ी ऊपजै, प्रेम न हाट बिकाय। राजा परजा जेहि रूचै, सीस देइ ले जाय।। जब मैं था तब हरि‍ नहीं, अब हरि‍ हैं मैं नाहिं। प्रेम गली अति साँकरी, ...

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